छोले 2
भागो.. भागो.. डाकू आ गये।
अरे ओ ठाकुर.. यह छोले का भगोना हमको दे
दे ठाकुर।
कुछ नई मिलेगा तुम्हें कालिया.. गब्बर से
कहना, रामगढ़ वालों ने पागल कुत्तों के आगे
पेडिग्री डालना बंद कर दिया है।
अच्छा.. कौन रोकेगा हमें?
मौत तुम्हारे सर पर खेल रही है कालिया।
आंय.. अबे जुगनू देख तो जरा, मेरे सर पर जुओं और डैंड्रफ के सिवा कुछ और भी खेलता दिख रहा है क्या।
मेरे ख्याल से ठाकुर उन दो गबरुओं की बात
कर रहा है कालिया।
😙😙
अरे ठाकुर साहब.. यह हमें देख के इन
डाकुओं की लार क्यों बहने लगी?
गबरू लौंडों को देख के यह गीले हो जाते
हैं वीरू..
सोच लो ठाकुर.. गब्बर को पता चलेगा कि
तुमने उसके आदमियों को छोले नहीं दिये तो अंजाम अच्छा न होगा।
भग बोड़ी के..
**
आओ कालिया.. का सोच के खाली हाथ आये हो, गब्बर सिर्फ भटूरे खा के गुजारा कर लेगा।
अब कल्लो गुजारा.. दुबारा न जा पायेंगे।
कितने आदमी थे?
सरदार.. दो।
वाऊ.. दो दो 😍। फिर तो
खूब एंजाय किया होगा हरामजादों।
कहां सरदार, वह दो थे
हम तीन.. खाक एंजाय करते। ठाकुर तो जी भर के देखने भी न दिहिस।
हाऊ रूड.. अच्छा सुनो बे, वह तीन खाली खाने, तीन में गोली भरी वाली नौटंकी
खेलें का।
रैपटा देंगे खींच के जो बोर किया तो। साले
क्या दिन आ गये हैं.. इतनी मंदी है कि खाने के लाले पड़े हुए हैं। गोली चला दें तो
गोली का खर्चा न निकले.. बंदूकें एक्सपायर हो चुकी हैं बिना चले। रात को भेस बदल
के भीख मांगने जाना पड़ता है, तब साला रात का खाना हो पाता है।
अरे ओ सांभा.. आज तो जुमेरात है न।
जी सरदार।
आज मुसलमानों के मुहल्ले जाना मांगने..
शायद कुछ मीट वीट लग जाये हाथ।
कब तक ऐसे दुर्दिन चलेंगे सरदार। हमारा
चार्म नेताओं ने लूट लिया है। एक बार लड़ जाओ चुनाव यार.. शायद सांसद विधायक कुछ बन
जाओ, तो कुछ खाने को तो ढंग से मिलेगा हमको।
सोचते तो हम भी हैं.. पर बोलना तक तो आता
नहीं हमको। कोई एक ठो पढ़े लिखे लौंडे का प्रबंध करो जो सब भाषण वाषण संभाल ले, तो सोचें कुछ।
ठीक है सरदार.. लेते हैं किसी आईटी वाले
को खोपचे में।
**
अरे किधर चल दिये सूरदास हंगल चाचा..
कौन.. अरे बसंती, तू हमेशा मुझे मस्जिद तक छोड़ देती है। चल आज भी छोड़ दे फिर।
एक ठो बात बताओ हंगल.. तुम पैदा भी बूढ़े
हुए थे क्या यार। साला कभी तो तुमको जवान नहीं देखे हम।
हीहीही.. का करें, शकल ही सिंघाड़े जैसी दी है ऊपर वाले ने। पैदा होने के टाईम अम्मा को ऐसे
ही बधाई भी मिली थी कि मुबारक हो.. चाचा जी पैदा हुए हैं।
अच्छा, कुछ स्लिम
हो गये हो ब्लाइंड मैन.. डायटिंग कर रहे क्या?
अरे कहां बसंती बेटा.. अहमद मियाँ की फिकर
में दुबला हो रहा हूँ। आईआईटी से इंजीनियरिंग कर ली है लेकिन घर पे पड़ा है.. कह
रहा हूँ भोपाल चला जा, मामू कबर खोदते हैं, अपने
साथ लगा लेंगे तुझे भी.. लेकिन सुनता ही नहीं।
हो गया बोल के। आ गयी तुम्हारी मस्जिद..
अब मैं चली आम तोड़ने।
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यूके.. तुम यहां क्या कर रहो?
अब पहाड़ी जगह पे आम कहां होयेंगे.. तो सेब
के पेड़ पे आम चिपका रहे थे कि तुम्हें बंदूक से तोड़ना सिखा सकें।
मने तुम सिखाओगे.. वह भी हमको।
हाँ क्यों नहीं.. माना कि तुम केंट
प्योरिफायर बेचती हो लेकिन हम भी बैगपाइपर वाले हैं।
अच्छा तो सिखाओ..
यह लो.. बारह बोर का कट्टा पकड़ो। ऐसे..
हाँ और एक आंख बंद करके उस आम पर निशाना लगाओ.. बस यूँ ही।
हट हरामिक बोदे.. हमसे घोड़ा दबवाने के
चक्कर में कुछ और दबाये ले रहा चपरकनाती। भग भग.. खूब समझती है बसंती तुम जैसे
छिछोरों को। जा रही हूँ मैं.. और खबरदार जो मुझे फालो किया तो.. बेवड़े।
अरे बसंती.. सुनो तो। आई लव यू यार..
पिलीच।
टाक टु माई ऐस्स..
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