सियासी मुशायरा 3
संचालक: और ठाकुर निंदानाथ जी का विकेट गिरने के बाद अब आयेंगे लैंड पुत्र 😁... तलफ्फुस पे गौर कीजियेगा, मामला धरतीपुत्र का है, मने नेता जी अब Rलेस शायरी फेकेंगे ☺, "आर" से उन्हें बचपन से शिकायत है तो वे उसे सीधा खा जाते हैं।
मुलायम: तोय का इंसल्ट कओगे हमाई... हमाई
मज्जी, हम आ बोलें न बोलें 😵
संचालक: चलिये खा लीजिये, हमाई बला से... कुछ धोती में बंधा हो तो छुड़ाईये 😆
मुलायम: धोती मा तुमाई अम्मा बंधी हय 😠
संचालक: अरे नेता जी, अक्लेस का क्लेस हमपे उताएंगे का 😳, कुछ डालिये शेर बकरी 🙂
मुलायम: हाँ तो लेव न... हमाई धोती से
लंगोटी तक सब उत्त पदेस से जुड़ी हय तो शायई भी उत्त पदेस से होगी।
संचालक: हाँ तो राजस्थान के चुनाव के बाद
सुनायेंगे का 😵
मुलायम: तो सुनो... अज्ज किया हय...
खता न थी छिपाल की, न थी अकलेस की☺
गोटी फिट कई दियो थी नारद ने क्लेस की🤔
कहां सपने थे हमाए केन्द की ताकत बन्ने के😵
कहां सत्ता भी न बची हमाए उत्त पदेस की😭
और अंत में बउवा के बिहाफ में😍
कभी सत्ता आती है तो कभी सत्ता चली जाती
है ☺
औ लइके हैं लइकों से तो गलती हो ही जाती
है 😜
("वाह-वाह" के
साथ अंडे टमाटर का प्रसाद नाजिल हुआ ही था कि राहुल बाबा मचल गये।)
राहुल: अब मैं सुनाऊंगा... मैं सुनाऊंगा।
संचालक: क्या सुनायेंगे नवाब साहब 😳
राहुल: शायरी 😁, मैं और
मेरा कांपलान 😍
(पीछे बैठी शोअरा कराम की टीम ने वहीं गिरा
कर टिपिया लिया... माता ने बचाया, तो बमुश्किल युवराज मुक्ति
पाये।)
राहुल: अबे सालों 😠, मम्मी को
साथ बिठा कर शायरी करवाओगे तो कांपलान की ही करूँगा, न कि
सनी लियोन की 😡
संचालक: चलिये आ जाइये, दिल के छाले फोड़ लीजिये 😏
राहुल: थैंक्यू-थैंक्यू 😁, तो पेश है
मेरा मैनीफेस्टो 😘
संचालक: अरे युवराज, मुशायरा है प्रेस कांफ्रेंस नहीं, मैनीफेस्टो बाद में पढ़ लीजियेगा 😳
राहुल: अबे चुपेगा या आस्तीन चढ़ाऊं😠... नेता शिट
भी पालिटिकल स्टाईल में करता है, हम मैनीफेस्टो ही पढ़ेंगे।
तो दोस्तों, सुनिये और दाद दीजिये।
संचालक: इरशाद... इरशाद😛
राहुल: तेल लेने गये हैं 😏, हाँ तो
मुलाहिजा फरमाइये...
जब भी मैं परेशान हुआ
मेरे पास मेरा कांपलान हुआ 😘
गिरा दूंगा, ढहा दूंगा,
ध्वस्त कर दूंगा तुम्हारे वकार को
मेरे कांपलान को हाथ लगाया तो उखाड़ दूंगा
सरकार को😍
भले दुनिया भोजन, रोजगार, न्याय को तरसती है
लेकिन मेरी तो दुनिया ही कांपलान में बसती
है😗
बस यही क्राईम मैं बेशुमार करता हूँ
मैं अपने कांपलान से बहुत प्यार करता हूँ
(पहले मतले के साथ ही अंडे, टमाटर, जूते चलने लगे थे, लेकिन
बाबा माईक छोड़ने को राजी नहीं थे तो पीछे वालों ने टांगे पकड़ कर खींच ली और अपने
बीच बिठा लिया।)
संचालक: और जैसा कि आप देख रहे हैं कि हम
कांपलान पुराण से मुक्ति पा चुके हैं तो अब चुराया हुआ चारा शायरी की शक्ल में
लेकर पेश होंगे वह, जिनके कानों में भी रेशमी जुल्फें हैं..
(लालू ने पास पड़ा अंडा संचालक को खींच मारा।)
राजनाथ: मैं इसकी कठोर निंदा करता हूँ।
लालू: हाँ तो करते रहो बुड़बक।
हुर्रर्रर्रर्र 😏। हाँ तो
भाई खरा, जादा तो हम बोलते नहीं हैं तो रचिसे
बोलेंगे... गौर कीजिये...
चिप्स में आलू से और बिहार में लालू से ☺
मुक्ति मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है 😋
संचालक: इसमें शेर कहां है 😨
लालू: अबे हम यादव हैं... इसमें नौ मन की
भैंस है और तुम छटांक भर का शेर ढूंढ रहे हो😏 लो एक ठो और सुनो...
अनुराग की बीवी थी कालकी
फिलम बनाता है आर बालकी
कुछ उखाड़ न पहियो गुदड़ी के लाल की
हाँ तो प्रैम से बोलो, जय कनहइयालाल की 😊😚
(इस बार तो ससुरे अंडे, टमाटर, जूते सब खत्म ही हो गये।)
क्रमशः
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