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पादड़ी बीड़ी

पादड़ी बीड़ी


अरे भाई साहब.. अंदर आ जायें का।

अंदर तो आ गये हो गंवार और कितना अंदर आओगे.. दिल में बसा के रख लें का तुम्हें।

बैठ जायें का।

अबे बैठने के बाद पूछ रहे हो.. एकदमै टोपे हो का।

यह लिहाड़ी विज्ञापन एजेंसी का ऑफिस ही है न।

हां है तो सही.. लेकिन हमने कोई लोन नहीं लिया बैंक से और तो और.. हमारा भारत छोड़ो आंदोलन में पार्टिसिपेट करने का भी कोई इरादा नहीं।

का है भाई साहब कि हमारा बीड़ी बनाने का काम है, तो उसके लिये एक विज्ञापन बनवाना था और आप चूँकि एड एजेंसी वाले हैं तो कस्टमर होने के नाते अंदर घुसने और बैठने का अधिकार तो रखते हैं न।

अरे मालिक आप सर पे बैठने का अधिकार रखते हैं.. अरे छोटू, साहब के लिये एक चाय लाना न.. मलाई मार के।

जब लाना ही '' है तो मलाई क्या काला हिट मार दो। खैर छोड़ो.. कोई आइडिया डिस्प्ले करो तनिक।

जी जरूर जरूर.. क्या नाम है बीड़ी का।

पादड़ी बीड़ी।

हें.. यह कैसा अश्लील नाम है।

अश्लील काहे.. यह हमारे गाँव देहात के बीड़ीभक्षक भय्या लोगों के लिये एकदम सूटेबल नाम है। कभी देखे नहीं का.. बीड़ी का सुट्टा लगाये बिना सुबह का प्रेशर ही नहीं बनता ससुरों को।

हां यह तो है.. सुबह की पहली की पहली सीढ़ी, पादड़ी बीड़ी। लीजिये टैगलाईन तैयार हो गयी।

हां वो तो है.. बाकी दिखायेंगे का।

एसा करते हैं कि किसी कालोनी का पब्लिक टायलेट दिखाते हैं जहां लोगों की लाईन लगी है.. एक हगनू अंदर बुक है लेकिन उसे उतर ही नहीं रही और बाकी सब बार बार घड़ी देख रहे हैं।

मतलब हगने भी घड़ी पहन के जायेंगे 😳

तो क्या.. हमारे देश में मोदीकाल चल रहा है, सबकुछ पासिबल है। हां तो मामला बेहद नीरस चल रहा है कि अपने हीरो की एंट्री होती है।

पोस्टर या दीवार फाड़ के निकले तो..

एकशन थोड़े करना है उसे.. नहीं मतलब एक्शन सीक्वेंस भी बनाई जा सकती थी लेकिन बीड़ी का नाम भी तो जस्टिफाई करना है न.. पादड़ी।

हां ठीक है आगे..

तो अपना हीरो टायलेट के आगे लगी लाईन देखता है, सर खुजाता है और फिर चुटकी बजा के आइडिया मिलने का एक्सप्रेशन देता है और जेब से एक बंडल निकालता है।

हमारी बीड़ी का न।

महाराज.. विज्ञापन आपकी बीड़ी का है तो मैनफोर्स या कामसूत्र का बंडल तो नहीं निकालेगा न। आगे सुनिये.. वह अंदर 'आती नहीं आती नहीं' का करुण क्रंदन करते वीर पुरुष को दरवाजा खटखटा के एक बीड़ी देता है और जिसका सुट्टा लगाते ही वीर पुरुष के चेहरे पर रिलीज के वैसे ही भाव आ जाते हैं जैसे पद्मावती के बाद भंसाली के आये थे।

हां यह ठीक रहेगा.. आगे।

आगे अपना हीरो सबको एक एक बीड़ी थमा देगा और फटाफट लाईन क्लियर होके हीरो का नंबर आ जायेगा। अब इस एड के समापन पर हम एक अंग्रेज को दिखायेंगे जो कहेगा.. सस्ती नहीं सबसे अच्छी। बैकग्राउंड से यह टैगलाईन बोली जायेगी कि सुबह की पहली सीढ़ी पादड़ी बीड़ी।

भक्क.. अंग्रेज बीड़ी बेचेगा 😱

अरे लो यार.. अंग्रेज सीमेंट और पानबहार बेच सकता है तो बीड़ी क्यों नहीं।

महाराज औकात वाला बंदा लाओ यार.. यह सुबह सुबह बीड़ी से प्रेशर बनाने वाले देसी भय्ये अंग्रेज को मुंह नहीं लगायेंगे।

तो हिमालय से कोई दाढ़ी वाला थका दगा बाबा ले आते हैं जो कहेगा कि हानिकारक कैमिकलयुक्त बीड़ी को दूर भगाइये और स्वदेशी बीड़ी अपनाइये।

हद है यार.. मार्केट में कौन सी विदेशी बीड़ी बिक रही है जो स्वदेशी का राग अलापें।

अच्छा तो गौमाता को कत्लखाने में जाने से बचाइये, स्वदेशी पादड़ी अपनाइये कैसा रहेगा।

यार बीड़ी का गौमाता से क्या कनेक्शन.. माना कि देश में चूतियापे का दौर चल रहा है पर इतना भी नहीं।

तो ऐसा करते हैं कि देश भर में ढूंढ के कोई अमृत पिया हुआ मुगलकालीन बुड्ढा ले आते हैं जो दोनों हाथ फैला के कहेगा 'आपकी मेहरबानी से'.. तब ठीक रहेगा।

अरे बुड्ढों को बीड़ी नहीं पिलानी यार.. जवानों को अट्रैक्ट करो। मोदीकाल में युवा मूढ़ो की पकी फसल लहलहा रही है.. उसे काटने का आइडिया निकालो।

आजकल तो यही सब चूतियापा चल रहा है। फिर तो आपके लिये लास्ट एक्कय रास्ता है महाराज.. एकदमै सालिड।

और वह क्या..

कांसेप्ट थोड़ा चेंज करते हैं.. सीन फौजी कालोनी का दिखाते हैं, अंदर फौजी बैठा है, बाहर फौजी लाईन से लगे हैं और अपना हीरो भी मेजर की वर्दी पहन के हगने आता है और समापन पर वही मेजर डायलाग मारेगा.. पादड़ी बीड़ी, देश की बीड़ी।

हां यह सही है.. जब सेना के सहारे सीमेंट, बाईक, रिलायंस पेट्रोल बेचा जा सकता है तो बीड़ी क्यों नहीं। नमूने हाथों हाथ लेंगे.. गुड जाब। अब काला हिट मार के चाय मंगा ही लो.. डील डन।

वहां सरहद पर सैनिक शहीद हो रहे हैं और यहां आप एक बीड़ी नहीं पी सकते.. सुबह की पहली सीढ़ी, पादड़ी बीड़ी।

भारत माता की जय।
Written by Ashfaq Ahmad


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