मुनसीपालटी चुनाव
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ओह... क्या गजब नजारा था। वह भूरी आंखों और भूरे फर वाला स्मार्ट, किन्तु काया से कुपोषित श्वान, नाली के दूसरी साईड बैठा हुआ था और कई अल्ट्रा माडर्न डकैत से गबरू श्वान उसे सामने से घेरे हुए थे।
भागने का ऑप्शन ही नहीं था तो उसने पूंछ
की पेटी कस के अपनी इज्जत पे बांधी हुई थी और ऊपरी होंठ भींच कर अपने मोती जैसे
दांतों का प्रदर्शन कर रहा था... शायद बताने की कोशिश कर रहा था कि वह पतंजलि का
दंतकांति यूज करता है और राष्ट्रवादी श्वान है।
लेकिन दुष्ट श्वानों के तेवर ठंडे ही नहीं
हो रहे थे... अंततः उसने खंखार कर कहना चाहा...
'देखो यार...'
'चुप-चुप...' पर श्वान
गैंग के मुखिया ने डपट दिया, 'बिलकुल चुप। भौं... तुझे ज्ञात
नहीं मूर्ख, कि हमारे कबीले का नियम है कि हम एक दूसरे के
इलाके में घुस नहीं सकते... फिर भी दुस्साहस 😠'
'लेकिन भ्राताश्री...'
'खामोश... महाभारत नहीं चल रही है।'
'अरे मुझे भौंकने तो दो...'
'क्या भौंकोगे बे खच्चर?'
'मित्रों...'
तत्काल जादुई प्रभाव हुआ इन शब्दों का।
सारे श्वान जमीन से पीठ टिका कर उल्टे लेट गये और चारों टांगे आस्मान की तरफ उठा
कर, "कूंऽऽऽ" के
साथ जोरदार सलामी दी।
'तुमने श्रद्धेय के संबोधन की नकल करके हमें
अपनी बात सुनने पर विवश कर दिया है दुष्ट।' फिर मुखिया ने
घनगर्जना की, 'भौंको, क्या भौंकना
चाहते हो?'
'देखो दोस्तों, हमारे
कबीले का यह नियम कि हम एक दूसरे के इलाके में नहीं घुसेंगे... सिर्फ भोजन के लिये
है और मैंने अपनी सीमा से बाहर कदम भोजन के लिये नहीं रखा है।'
'तो फिर क्यों तूने हमारे मूत्र की पवित्र
गंध की मर्यादा तोड़ी।'
'देखो बहनों भाइयों, मुनसीपाल्टी
के चुनाव हैं... एक से बढ़कर एक गधे, खच्चर, लंगूर, नमूने चुनाव लड़ रहे हैं तो क्या आपका भाई
चुनाव नहीं लड़ सकता? क्या आपके भाई का हम श्वानों के
संवैधानिक अधिकारों के लिये आवाज उठाने का हक नहीं'
सुन कर मन द्रवित हो गया सभी श्वानों का
और गुस्सा जैसे काफूर हो गया। सभी गौरोफिक्र से उसकी बात सुनने लगे।
'बहनों भाइयों आप खुद सोचो... जरा जरा सी बात
पे हमें लतिया देना, हमें फेंका सड़ा खाना देना, बच्चों तक का हमें धेले-पत्थर मारना, डंडे से हमारी
पिटाई करना हम पर अत्याचार नहीं तो और क्या है।'
'बिलकुल है।' समवेत
स्वर गूंजे।
'वहां श्रद्धेय चिल्लाते चिल्लाते मरे जा रहे
हैं कि घर में टायलेट बनवाओ, और यह हमें सुबह शाम घर से बाहर
पोट्टी कराने ले जाते हैं और सड़कों, फुटपाथों को गंदा कराते
हैं... हमारे लिये सार्वजनिक शौचालय तक नहीं बनवा सकते। यह अन्याय है के नहीं?'
सबने मेज थपथपा कर सहमति जताई... अब
कुपोषित श्वान की इज्जत पर बंधी पेटी फिर से खुल कर राऊंड हो चुकी थी और वह दो
टांगों पर खड़े नेता के रूप में आ चुका था।
'और तो और, हमें
नैसर्गिक रूप से कामक्रीड़ा का अधिकार तक नहीं देते... देखते ही हमारे प्रयासों को
विफल करने के लिये डंडे, पत्थर चलाने लगते हैं। बताइये यह
कोई बात है।'
सबकी आंतरिक वेदनायें उभर आयीं और नैनों
से अश्रूधारा छूट पड़ी।
'यहां तक कि यह मनुष्य आपस में लड़ते हैं तो
एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये, इंसल्ट करने के लिये,
गाली देने के लिये हमारे नाम का इस्तेमाल करते हैं। वह गब्बर खुलेआम
कहता है, बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना... अरे हमारी
बिरादरी के लोगों को कभी तुम्हारे कैब्रे में दिलचस्पी थी भला।'
माहौल मातमी हो गया... सभी श्वान सुर में
सुर मिला कर जार-जार रोने लगे।
'और बिरादरी पर होते इन सब अत्याचार के खिलाफ
आपका अपना 'मोती', आपका भाई आवाज उठाना
चाहता है... चुनाव लड़ना चाहता है तो क्या कुछ गलत कर रहा है। क्या हमें हक नहीं।'
'तुम सही कर रहे हो भाई।' सिसकियों समेत कई स्वर गूंजे।
फिर कुछ श्वानों ने उसे अपनी पीठ पर उठा
लिया और चल पड़े जुलूस ले कर।
'हमारा मोती जिंदाबाद।'
'अरे आदमियों सिंहासन खाली करो, हमारा मोती आता है।'
'दीपक कहो या जोती कहो, वोट फार मोती कहो।'
और मुहल्ला लोकतंत्र के सदाबहार नारों से
गुंजायमान हो उठा। हम उम्मीद करते हैं कि अपना कुपोषित श्वान चुनाव जीतते ही खा खा
कर बुलडाग बन जायेगा, क्योंकि राजनीति का यही नियम है।
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